अलकनंदा नदी कैलास और बद्रीनाथ के निकट बहने वाली गंगा नदी की एक शाखा है। यह गंगा के चार नामों में से एक है। चार धामों में गंगा के कई रूप और नाम हैं। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा के नाम से जाना जाता है। यह उत्तराखंड में ‘शतपथ’ और ‘भगीरथ खड़क’ नामक हिमनदों से निकलती है।
यह स्थान गंगोत्री कहलाता है। कालिदास ने मेघदूत में जिस अलकापुरी का वर्णन किया है वह कैलास पर्वत के निकट अलकंनदा के तट पर ही बसी होगी जैसा कि नाम-साम्य से प्रकट भी होता है। कालिदास ने अलका की स्थिति गंगा की गोदी में मानी है और गंगा से यहाँ अलकनंदा का ही निर्देश माना जा सकता है।
संभवत: प्राचीन काल में पौराणिक परंपरा में अलकनंदा को ही गंगा का मूलस्रोत माना जाता था क्योंकि गंगा को स्वर्ग से गिरने के पश्चात् सर्वप्रथम शिव ने अपनी अलकों अर्थात् जटाजूट में बाँध लिया था जिसके कारण नदी को शायद ‘अलकनंदा’ कहा गया। आकाशगंगा नदी की अलकनंदा की शाखा जान पड़ती है। अलकनंदा का वर्णन महाभारत वन पर्व के अंतर्गत तीर्थयात्रा प्रसंग में है जहाँ इसे भागीरथी नाम से भी अभिहित किया गया है और इसका उद्गम बदरिकाश्रम के निकट ही बताया गया है।
अलकनंदा की पाँच सहायक नदियाँ हैं जो गढ़वाल क्षेत्र में 5 अलग अलग स्थानों पर अलकनंदा से मिलकर ‘पंचप्रयाग’ बनाती हैं। ये हैं-
भागीरथी संगम
- विष्णु प्रयाग जहाँ धौली गंगा अलकनंदा से मिलती है।
- नंदप्रयाग जहाँ नंदाकिनी नदी अलकनंदा से मिलती है।
- कर्णप्रयाग जहाँ पिंडारी अलकनंदा से मिलती है।
- रुद्रप्रयाग जहाँ मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है।
- देवप्रयाग जहाँ भागीरथी अलकनंदा से मिलती है।